कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या की तिथि के दिन दिवाली का त्योहार मनाया जाता है। इस बार यह तिथि 27 अक्टूबर दिन रविवार को है। हिंदू धर्म में दिपावली से बड़ा कोई त्योहार नहीं है। इस दिन सभी लोग मां लक्ष्मी, भगवान गणेश, कुबेर और इन्द्र देव का पूरे विधि विधान के साथ पूजन, अर्चन व स्तवन कर उनका आह्वान करते हैं और उनसे बुद्धि और समृद्धि का आशीर्वाद मांगते हैं। इस दिन पूजा के लिए कई दिनों पहले से तैयारी की जाती है। लक्ष्मी मां का आशीर्वाद आप बना रहे इसके लिए हम आपको बताते हैं कि पूजन से किन चीजों की तैयारी आपको करनी चाहिए, जिससे आपका आर्थिक संकट दूर हो सके… 1/5ऐसे करें लक्ष्मी पूजा की तैयारी एक साफ थाली में रोली, मोली, चावल, केसर, इत्र, कपूर, धूप, शुद्ध धृत का दीपक, धान की खील, बताशे, खांड के खिलौने, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, लाल फूलों की माला विशेषकर कमल का फूल, कुछ खुले फूलों की जरूरत होती है। एक सुंदर चौकी या पाटे पर मिट्टी के गणेशजी के दाईं ओर लक्ष्मीजी की प्रतिमा स्थापित कर दें। साथ ही नए-पुराने श्री यंत्र, कुबेर यंत्र और चांदी के सिक्के आदि भी रख लें। यूं ही नहीं कहलाता महापर्व: जानिए धनतेरस से लेकर भैयादूज तक का महत्व 2/5आर्थिक संकट होते हैं दूर पूजा स्थल को घर के मुख्य कक्ष में सजाया जाता है। पूजन से पहले लक्ष्मीजी के स्वागत के लिए घर के मुख्य प्रवेश द्वार पर खूब रोशनी होनी आवश्यक है। महानिशा में की जाने वाली साधनाएं शीघ्र फलदायक होती हैं। इनसे आर्थिक संकट दूर होते हैं और प्रतिष्ठान की व्यावसायिक स्थिति में प्रगति होकर सफलता कदम चूमती है। लक्ष्मी पूजन के अलावा दिवाली की रात जादू-टोने, ये सब चलता है पूरी रात 3/5महालक्ष्मी पूजन से पहले करें गणेश पूजन गणेशजी विवेक के देवता हैं और लक्ष्मी जी संपदा की देवी। संपत्तिवान की अपेक्षा विवेकवान होना, कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। ऐसे में लक्ष्मी पूजन से पहले गणेश पूजन करें। यह जरूरी है कि धन का उपार्जन न्याय नीति के आधार पर हो और उसका उपयोग करने में भी विवेकशीलता से काम लिया जाए। जानिए किस देश में होती है माता लक्ष्मी की किस रूप में पूजा 4/5इसलिए लक्ष्मीजी को कहा गया उलूक वाहिनी
गणेशजी का वाहन मूषक एक ऐसा जीव है जो बहुत साधारण सा होने के बावजूद बुद्धि, ज्ञान में असाधारण है, जबकि लक्ष्मी जी का वाहन उल्लू है इसलिए लक्ष्मीजी को उलूक वाहिनी कहा गया है। उलूक रात्रि में ही देख सकता है इसलिए उस पर सवार होकर लक्ष्मी क्योंकि दिन में कहीं नहीं जा सकतीं, अतः रात्रि में ही भ्रमण करती हैं। ऐसे में ब्रह्मांड पुराण में महानिशीथ काल की लक्ष्मी पूजा को विशेष फलदायिनी कहा गया है। महालक्ष्मी वर्ष: देखें अगला एक साल आर्थिक और करियर के मामले में कैसा रहेगा 5/5इनके यहां होता है लक्ष्मी का वास अनीतिपूर्वक उपार्जन और कुमार्ग पर व्यय किया जाए तो लक्ष्मीजी की प्रसन्नता का लाभ नहीं मिलता। धन का दुरुपयोग और पाप कर्मों पर व्यय से लक्ष्मी जी रूष्ट होकर चली जाती हैं। महाभारत के ग्यारहवें अध्याय में लक्ष्मीजी स्वयं रुक्मिणीजी से कहती हैं – मेरा निवास धर्मपरायण, निर्भीक, चतुर, क्षमाशील, कर्मठ, आत्मविश्वासी, अतिथि और वृद्धजनों की सेवा करने वाले गृहस्थियों के यहां होता है।